Jyotish RSS Feed
Subscribe Magazine on email:    

चलो माँ के द्वारे

vaishno devi trip how to go there

30 सितंबर 2011

माता वैष्णव देवी के दर्शन के लिए सालों भर भक्तों का रेला लगा रहता है। खास कर नवरात्रों में तो यहां देश विदेश से भक्तगण आते हैं। अगर आप भी वैष्णव देवी जाने की सोच रहे हैं तो यहां चढाई से लेकर देवी के दर्शन तक की यात्रा के बारे में विस्तार में जानकारी दी जा रही है।  

भगवती सा कोई दानी नहीं है। माता के भवन पर शीश नवाने भर से सारे पापों का नाश हो जाता है। यदि हमें अपनी समस्त बाधाओं और कष्टों से सदा-सदा के लिए पलभर में छुटकारा चाहिए तो माता के दरबार से बढ़कर तीनों लोकों में कोई स्थान नहीं है। कश्मीर के शक्तिपीठों में वैष्णोदेवी सिद्धीपीठ को सर्वोपरि माना गया है। यह स्थान जम्मू से लगभग 46 मील उत्तर-पश्चिम की ओर एक अंधकारमय गुफा में है। जहॉ भगवती निवास करती हैं वहॉ कोई मंदिर नहीं है। माना जाता है कि देवी ने अपने त्रिशूल के प्रहार से गुफा का निमार्ण किया है। नवरात्रि में यहॉ की यात्रा का विशेष महत्व माना गया है। देशभर से यात्रीगण जम्मू पहॅुचते हैं। यह दिल्ली से 550 किमी0 दूर है। जम्मू बस स्टैंड बस और टैक्सी आदि द्वारा यात्रीगण कटरा की ओर प्रस्थान करते हैं। जम्मू से कटरा की दूरी लगभग 52 किमी0 है। यह दूरी तय करने में 2 से 3 घंटे का समय लगता है। यात्रा का मार्ग अत्यंत मनोहर और विशेष आनंद प्रदान करने वाला है।

कटरा:- समुद्रतल से 2500 फीट की ऊॅचाई पर स्थित कटरा शहर वैष्णों देवी यात्रा का आधारभूत स्थल है। यह त्रिकूट पर्वत की तलहटी में बसा है। यहॉ ठहरने के लिए हर श्रेणी के गेस्टहाउस व होटल हैं। कटरा में काफी बड़ा बाजार भी है, जहॉ खान-पान की सभी वस्तुओं के साथ जरूरत का सभी सामान मिलता है। यात्रीगण यहॉ से छड़ी, रबर के जूते आदि यात्रा का सामान खरीद कर यात्रा प्रारम्भ करते हैं। माता के दरबार जाने वाल यात्रियों के लिए यात्रा पर्ची लेना अनिवार्य होता है। यात्रा पर्ची कटरा बस स्टैंड पर स्थित टूरिस्ट रिसेप्शन सेंटर टाउन हाल, कटरा से सुविधापूर्वक निःशुल्क मिलती है। यहॉ के क्लॉक रूम में यात्रीगण अपना अतिरिक्त सामान जमा करवा सकते हैं। यात्रा पर्ची के बिना वाणगंगा से वापिस आना पड़ता है। माता के भवन पर पहॅुच कर यही पर्ची दिखाकर पवित्र गुफा के दर्शन के लिए नम्बर मिलता है। कटरा से दरबार लगभग 14 से 15 किमी0 दूर है। यह दूरी यात्रीगण पैदल, खच्चर या फिर पालकी द्वारा तय करते हैं। यात्रा मार्ग में जगह-जगह प्याऊ, शौचालय, विश्रामस्थल, बिजली के प्रकाश व जलपान की अच्छी व्यवस्था है। यात्रा मार्ग में किसी भी प्रकार का व्यसन निषेध है।

प्रवेशद्वार:- कटरा से लगभग 1 किमी दूर दर्शनीय दरवाजा स्थित है। कहा जाता है कि जब भैरोंनाथ अभद्र व्यवहार की चेष्ठा से देवी को पकड़ने के लिए दौड़ा तो कन्या रूपी देवी इसी दरवाजे से त्रिकूट पर्वत की ओर गयीं थीं। त्रिकूट पर्वत के प्रथम दर्शन यहीं से होते हैं। कुछ दूरी आगे चलने पर देवी मॉ के भक्त गुलशन कुमार का लंगरस्थल है। प्रतिदिन सुबह से शाम तक देवी मॉ के प्रसाद के रूप में यहॉ लंगर चलता रहता है। कई भक्तगण माता का प्रसाद पा कर इच्छानुसार दान कर देते हैं।

वाणगंगा:- जब कन्या रूपी महाशक्ति त्रिकुट पर्वत की ओर गयीं तो उनके साथ वीर लांगुर भी थे। चलते-चलते जब वीर लांगुर को प्यास लगी तो देवी ने धरती पर वाण मार कर गंगा की धारा प्रवाहित कर दी। जिसके कारण इसका नाम वाणगंगा हुआ। इसी गंगा में मॉ भगवती ने अपने केश धोये। अतः इसे बालगंगा भी कहते हैं। यह स्थान कटरा से 2 किमी0 दूर स्थित है। यात्रीगण एक पुल द्वारा गंगा को पार कर आगे बढ़ते हैं। ज्यादातर यात्री यहॉ स्नान भी करते हैं। यात्रियों की सुविधा के लिए यहॉ स्नानघाट तथा कपड़े आदि बदलने की जगह भी बनी है। यहीं से सीढि़यों वाला पक्का मार्ग शुरू हो जाता है, साथ ही एक अन्य घुमावदार मार्ग भी है। इस मार्ग से यात्री घोड़े व खच्चर आदि के द्वारा भी जा सकते हैं।

चरण पादुका:- कहा जाता है कि इस स्थान पर रुक कर देवी ने पीछे मुड़कर देखा था कि भैरोंनाथ आ रहा है कि नहीं। रुकने के कारण इस जगह देवीकन्या (कन्यादेवी) के चरण चिन्ह बन गये। इसी कारण इस जगह का नाम चरण पादुका हुआ। यह स्थान वाणगंगा से लगभग 2 किमी0 दूर है तथा समुद्रतल से इसकी ऊॅचाई 3380 फीट है। यात्रा का यह दूसरा विश्राम स्थल है।

आदिकुमारी:- चरण पादुका से काफी दूर पहॅुच कर वैष्णवी कन्या ने यहॉ एक अत्यंत सकरी गुफा में 9 मास तक निवास किया था तथा भैरोंनाथ की मृत्यु के निश्चित समय की प्रतिक्षा की थी। गुफा का प्रवेश द्वार अत्यंत संकीर्ण होने के कारण भैरोंनाथ इसमें प्रवेश नहीं कर सका था, क्यॅूकि भैरोंनाथ शरीर से काफी मोटा था। 9 माह व्यतीत हाने पर देवी ने उसे युद्ध के लिए ललकारा। गुफा की अन्दर से आकृति माता के गर्भ जैसी है, जिसमें अन्दर प्रवेश करने पर उसी प्रकार का अनुभव होता है जैसा किसी शिशु को माता के गर्भ में होता है। अतः इस स्थान का एक नाम गर्भजून भी है। भक्तगण इस गुफा में प्रवेश कर दूसरे द्वार से निकलते हैं तथा अपने को धन्य मानेते हैं। यह स्थान चरण पादुका से 4 से 5 किमी0 दूरी पर समुद्रतल से 4800 फीट की ऊॅचाई पर स्थित है। यहॉ रात्रि विश्राम के लिए एक गेस्टहाउस भी है।

हाथीमत्था:- आदिकुमारी से आगे की यात्रा सीधी खड़ी चढ़ाई के रूप में शुरू होती है। यहॉ त्रिकुटा पर्वत हाथी के माथे के समान प्रतीत होता है। इसे हाथीमत्था कहा जाता है। यहॉ से सीढि़यों वाले रास्ते से जाने की अपेक्षा घुमावदार रास्ते से जाने पर चढ़ाई कम मालूम पड़ती है। आदिकुमारी से हथीमत्था 1 से 2 किमी0 दूर स्थित है।

सांझीछत:- आदिकुमारी से यह स्थान 4 से 5 किमी0 दूरी पर समुद्रतल से 7200 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहॉ भैरों मंदिर के लिए एक प्रथक रास्ता गया है। दरबार जाने वाले यात्री हाथीमत्था से आगे प्राचीन सांझीछत की ओर न जाकर नये रास्ते से भवन की ओर चले जाते हैं। यहॉ से रास्ता छोटा है तथा चढ़ाई भी कम पड़ती है। अब इसे भी सांझीछत ही कहा जाने लगा है। अन्तिम 3 किमी0 के मार्ग में उतराई मिलती है।

दरबार:- समुद्रतल से 5200 फीट की ऊॅचाई पर माता वैष्णो का भवन स्थित है। पवित्र गुफा में प्रवेश करने से पूर्व स्नान करना चाहिए। इसके लिए भवन के नीचे एक स्थान बना हुआ है, जहॉ पुरुष और महिलाओं के स्नान की अलग-अलग व्यवस्था है। स्नान के लिए पवित्र गुफा में से आने वाली चरणगंगा की जलराशि का प्रयोग होता है। यहॉ भवन में प्रवेश करते समय चमड़े आदि की वस्तुऐं ले जाना निषेध हैं। यात्रीगण अपना सामान, जूते, बैग आदि क्लॉकरूम में जमा करवा सकते है। गुफा के द्वार पर एक बड़ा पत्थर शिलारूप में है, जिसे भैरों का धड़ कहा जाता है। उसी के ऊपर से लेटकर गुफा में प्रवेश करना होता है। गुफा में पहले लगभग 3 मीटर लेट कर जाना पड़ता है। लगभग 18 मीटर लम्बी गुफा में प्रवेश करते ही शीतल जल की धारा पैरों को छूती है। पूरी गुफा में सीधा खड़ा नहीं हुआ जा सकता। गुफा के अन्त में महासरस्वती, महालक्ष्मी, महाकाली तीन भव्य पिण्डि़यों के रूप में विराजमान हैं। कुछ लोग बीच वाली माता को वैष्णो देवी भी कहते हैं। इन पिण्डि़यों के चरणों से निरन्तर जल प्रवाहित होता रहता है, जिसे चरणगंगा कहते हैं। यहॉ पर बैठे पुजारी भेंट आदि लेकर पूजन करवा देते हैं। दर्शन कर नयी गुफा के रास्ते वापिस आना होता है। वाहर आकर यात्रीगण कन्यापूजन करते हैं तथा हलवा-पूरी आदि बॉटते हैं।

भैरों मंदिर:- माता के भवन से लगभग 3 किमी0 ऊपर भैरोंनाथ का मंदिर है। आदिकुमारी से 9 माह के पश्चात् बाहर निकल कर देवी कन्या ने भैरों पर अपने त्रिशूल का प्रहार किया जिसके फलस्वरूप भैरों का सिर कट कर दूर जा गिरा। जहॉ यह सिर गिरा वहीं भैरोंनाथ का मंदिर है। यहॉ भैरोंनाथ के सिर्फ सिर के दर्शन होते हैं। वापसी में आते समय भैरोंनाथ के दर्शन करना परम आवश्यक है। भैरोंनाथ के देवी कन्या से क्षमा प्रार्थना करने पर माता ने उन्हें वरदान दिया कि जो कोई भक्तगण मेरे दर्शन को यहॉ आयेगा उसे मेरे दर्शनों के पश्चात् तुम्हारे दर्शन भी करने होंगे, तभी उसकी यात्रा सफल होगी। साथ ही देवी ने कहा कि यदि मेरे दर्शन से पहले कोई तुम्हारे दर्शन कर लेगा तो उसे मेरे दर्शनों का लाभ प्राप्त नहीं होगा। भैरों मंदिर की चढ़ाई अत्यंत दुर्गम, सीधी खड़ी तथा सॅकरी है। यहॉ आगे जाने पर मार्ग नीचे सांझीछत पर मिल जाता है। इस पवित्र तीर्थ के दर्शन विषय विकारों का नाश करने वाले हैं। माता की पिण्डि़यों के दर्शन से अचल सुख-सम्पत्ति प्राप्त होती है।
 
अनिरुद्ध शर्मा
More from: Jyotish
25491

ज्योतिष लेख

मकर संक्रांति 2020 में 15 जनवरी को पूरे भारत वर्ष में मनाया जाएगा। जानें इस त्योहार का धार्मिक महत्व, मान्यताएं और इसे मनाने का तरीका।

Holi 2020 (होली 2020) दिनांक और शुभ मुहूर्त तुला राशिफल 2020 - Tula Rashifal 2020 | तुला राशि 2020 सिंह राशिफल 2020 - Singh Rashifal 2020 | Singh Rashi 2020