27 मई 2011
लंदन। चंद्रमा पर उतना पानी हो सकता है, जितना आज पृथ्वी पर है। यह बात अपोलो अभियान द्वारा लाए गए एक पत्थर के शोध से पता चली है।
वर्ष 1972 में धरती पर लौटे अंतिम मानवयुक्त अपोलो-17 यान द्वारा लाए गए पत्थर के अध्ययन से पता चला है कि चंद्रमा में गैस के रूप में प्रचुर मात्रा में जल उपलब्ध हो सकता है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि चांद की परत (मेंटल) में हमारी उम्मीद से 100 गुना अधिक जल मौजूद हो सकता है। यह चंद्रमा की बाहरी सतह (सरफेस क्रस्ट) के नीचे पत्थर के मोटी परत के रूप में मौजूद है।
वैज्ञानिकों का तो यह भी मत है कि इस परत में पृथ्वी परत से अधिक जल हो सकता है। अगर ऐसा है तो यह चंद्रमा के निर्माण को लेकर हमारे सदियों पुराने सिद्धांत को बदल देगा।
ज्यादातर जानकार यह मानते हैं कि पृथ्वी के शुरुआती इतिहास के दौरान एक वस्तु बाहर निकल कर अंतरिक्ष में चली गई थी। इसी से चंद्रमा का निर्माण हुआ।
अब जबकि चंद्रमा पर प्रचुर मात्रा में पानी मिलने की सम्भावना जताई जा रही है, इसके निर्माण और इसकी आंतरिक संरचना को लेकर हमारे मन में संदेह उत्पन्न हो सकता है।
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