3 अक्टूबर 2011
जगत जननी दुर्गा !
जो जगत के जीवों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूप चारों फल प्रदान करने वाली हैं, जो जन्म, मृत्यु, जरा और व्याधि का अपहरण करने वाली परात्परा हैं, जो मोक्षदायिनी, भद्रा तथा शिवभक्ति प्रदान करने वाली हैं, ऐसी दुर्गे देवी का स्मरण करने मात्र से जटिल से जटिल क्लेशों का समूल रूप से नाश हो जाता है। श्री दुर्गा देवी का प्राकट्य शरदनवरात्रि में हुआ था।
पूर्वकाल में जब महिषासुर नामक महादैत्य इन्द्र एवं समस्त देवताओं को पराजित कर व स्वर्ग पर अपना अधिकार कर, स्वयं इन्द्र बन बैठा, तब इन्द्र आदि पराजित देवता ब्रह्मजी के साथ उस स्थान पर गये, जहाँ श्रीविष्णु और भगवान शिव विराजमान थे। देवताओं से सारा वृत्तांत सुनकर दोनों देवेश्वरों ने बड़ा क्रोध किया। तभी उनके व समस्त देवताओं के शरीर से एक महान तेज प्रकट हुआ, जो एकत्रित होकर एक नारी के रूप में परिणत हो गया।
शिवजी के तेज से उस देवी का मुख, यमराज के तेज से सिर के बाल, श्रीविष्णु के तेज से दोनों भुजाऐं, चन्द्रमा के तेज से दोनों स्तन, इन्द्र के तेज से कटिप्रदेश का प्रार्दुभाव हुआ। वरुण के तेज से जंघा और पिंडली तथा पृथ्वी के तेज से नितम्बभाग प्रकट हुआ। ब्रह्मा के तेज से दोनों चरण और सूर्य के तेज से उनकी अँगुलियाँ हुई। वसुओं के तेज से हाथों की अँगुलियाँ तथा कुबेर के तेज से नासिका प्रकट हुई। उस देवी के दाँत प्रजापति के तेज से और अग्नि के तेज से तीनों नेत्र प्रकट हुए। संध्या के तेज से भौहें और वायु के तेज से दोनों कान प्रकट हुए। उस देवी के श्रीअंगों की आभा प्रभातकाल के सूर्य के समान थी तथा मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट सुशोभित था, उनके मुख पर मंद मुस्कान की छटा छायी हुई थी तथा वे हाथों में वरद, अंकुश, पाश व अभयमुद्रा धारण किये हुए थीं। देवी ने महिषासुर और समस्त दैत्यों का नाश करके, इन्द्र को पुनः स्वर्ग का ऐश्वर्य प्रदान किया तथा देवताओं को वरदान दिया कि जो भी मनुष्य शरदनवरात्रि में तन, मन, धन से मेरी पूजा-अर्चना करेगा, उसे कोई पाप नहीं छू सकेगा तथा उसके घर में पापजनित आपत्तियाँ भी नहीं आयेंगी। उसके घर में कभी दरिद्रता नहीं होगी तथा उसको कभी अपने प्रेमीजनों के बिछोह का कष्ट भी नहीं सहना पड़ेगा।
वेदों के अनुसार दुर्गाजी के सोलह नाम बतलाये गये हैं- दुर्गा, नारायणी, ईशाना, विष्णुमाया, शिवा, सती, नित्या, सत्या, भगवती, सर्वाणी, सर्वमंगला, अम्बिका, वैष्णवी, गौरी, पार्वती और सनातनी। ये सभी नाम कल्याणदायक हैं। ज्ञानियों का मत है कि मनुष्य दुर्गाजी के उक्त नामों की व्याख्या जानने मात्र से भगवती के सानिध्य और आर्शीवाद को प्राप्त होता है। जो देवी दैत्य और महाविध्न आदि का हनन करती है, उसे दुर्गा कहते हैं। जो देवी तेज, रूप और गुण में नारायण के समान है, उसे नारायणी कहते हैं। जो देवी सम्पूर्ण सिद्धियों को देने वाली है, उसे ईशाना कहते हैं। जो देवी सम्पूर्ण जगत को माया द्वारा मोहित करती है, उसे विष्णुमाया कहते हैं। जो देवी शिवप्रिया एवं कल्याणस्वरूपा है, उन्हें शिवा कहते हैं। जो देवी पतिव्रता एवं सुशीला है, उसे सती कहते हैं। जो देवी श्रीविष्णु की तरह नित्य है, उसे नित्या कहते हैं। जो देवी सत्यस्वरूपा है, उसे सत्या कहते हैं। जो देवी सम्पूर्ण ऐश्वर्य एवं सिद्धियों को धारण करती है, उसे भगवती हैं। जो देवी सम्पूर्ण प्राणियों को जन्म, मृत्यु जरा तथा मोक्ष की प्राप्ति कराती है, उसे सर्वाणी कहते हैं। जो देवी समस्त प्रकार का मंगल प्रदान करती है, उसे सर्वमंगला कहते हैं। जो देवी समस्त विश्व की जननी है, उसे अम्बिका कहते हैं। जो देवी विष्णुप्रिया है, उसे वैष्णवी कहते हैं। जो देवी पीले रंग की तथा शिवप्रिया है, उसे गौरी कहते हैं। जो देवी पर्वतराज हिमालय की पुत्री है, उसे पार्वती कहते हैं तथा जो देवी सर्वत्र और सब काल में विद्यमान है, उसे सनातनी कहते हैं।
दुर्गा देवी के उक्त नामों का प्रतिदिन जाप करने से मनुष्य धन-धान्य एवं पुत्र-पौत्रादि से सम्पन्न होता है। भगवती चण्डिका प्रसन्न होने पर समस्त रोगों को नष्ट कर देती हैं तथा कुपित होने पर समस्त कामनाओं का नाश कर देती हैं। जो लोग अम्बिका की शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं, अपितु वे दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं। जो देवी कालरात्रि, महारात्रि और मोहरात्रि के नाम से सम्पूर्ण जगत में विख्यात हैं, उनका स्तवन करने मात्र से मनुष्य मनोःअभिलाषित दुर्लभतम् वस्तु एवं स्थिति को सहज ही प्राप्त कर लेता है तथा परम मोक्ष को पाकर कृतार्थ होता है।
अनिरुद्ध शर्मा
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