मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल ने 1976 में फिल्म बनायी थी-मंथन। फिल्म का बजट करीब 12 लाख था। ‘मंथन’ गुजरात डेयरी उद्योग की सहायता से बनी थी, जिसमें पाँच लाख किसानों ने दो-दो रुपए का योगदान दिया था। बूंद-बूंद कर घड़ा भरा और एक महान फिल्म का जन्म हुआ। सहकारिता के फॉर्मूले पर बनी ‘मंथन’ के प्रयोग को सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिए अब नए सिरे से अपनाया जा रहा है। राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी फिल्म ‘आई एम’ के लिए बड़ी रकम निर्देशक ओनिर ने सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के जरिए जुटायी। ‘आई एम’ से दुनिया भर के 45 शहरों से करीब 400 लोग बतौर सहनिर्माता जुड़े। फेसबुक के जरिए ‘आईएम’ के सहनिर्माता बने दिल्ली के हस्तशिल्प निर्यातक राजेश जैन अब खुद एक फिल्म बना रहे हैं। राजेश जैन कहते हैं,”सोशल नेटवर्किंग साइट की मदद से फंड जुटाया जा सकता है। आप लोगों तक सीधे बात पहुंचा सकते हैं और इसका उपयोग किया जाना चाहिए।”
भारतीय सिनेमा के बीते 100 साल में फिल्मकारों के सामने सबसे बड़ी मुश्किल धन जुटाने की रही है। भारतीय फिल्मों के जनक दादा साहेब फाल्के को राजा हरीशचंद्र बनाते वक्त पत्नी के गहने तक बेचने पड़े थे, और उसके बाद कई फिल्मकारों ने खून-पसीना एक कर धन जुटाया और फिल्म की विफलता के बाद अर्श से फर्श पर आ गए। लेकिन, ‘क्राउडफंडिंग’ की परिकल्पना जोखिम का बंटवारा करती है। ओनिर की कोशिश को मिली सुर्खियों ने कई फिल्मकारों का ध्यान ‘क्राउडफंडिंग ’की तरफ खींचा है।
आगामी दस साल में सोशल मीडिया के जरिए क्राउडफंडिंग की मदद से फिल्म निर्माण एक ट्रेंड बन सकता है। लेकिन, सोशल मीडिया के तमाम मंच बॉलीवुड को सिर्फ इस एक वजह से प्रभावित नहीं करने जा रहे हैं। फिल्म निर्माण से जुड़ा हर पहलू आने वाले चंद साल में सोशल मीडिया से प्रभावित होगा। हॉलीवुड का एक उदाहरण यहां उल्लेखनीय है। हॉलीवुड लेखक-निर्देशक ओरेन पेली ने साल 2007 में ‘पैरानॉरमल एक्टिविटी’ नामक एक भूतहा फिल्म बनायी। महज 15 हजार डॉलर बजट में बनी इस फिल्म के अमेरिका में प्रदर्शन के अधिकार पैरामाउंट पिक्चर्स ने 3,50,000 डॉलर में खरीदे। कुछ बदलाव के बाद इसे सितंबर 2009 में चुनिंदा सिनेमाघरों में प्रदर्शित किया गया। फिल्म को उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिलती देख पैरामाउंट पिक्चर्स ने सोशल मीडिया पर एक अभियान आरंभ किया। इसमें कहा गया कि अगर एक लाख लोग फेसबुक पेज पर फिल्म देखने की इच्छा जाहिर करते हैं तो फिल्म को देशव्यापी स्तर पर प्रदर्शित किया जाएगा। फेसबुक पर साढ़े पांच लाख से ज्यादा लोगों ने इच्छा जाहिर की तो फिल्म का बड़े स्तर पर रिलीज किया गया। इसके बाद अमेरिका में फिल्म ने 108 मिलियन डॉलर और पूरे विश्व में 194 मिलियन डॉलर की कमाई कर अनूठा रिकॉर्ड बना डाला। भारतीय सोशल मीडिया जगत के पास में इस तरह का कोई उदाहरण भले नहीं है, लेकिन देश के साढ़े पांच करोड़ से ज्यादा फेसबुक उपयोक्ताओं समेत कुल 12 करोड़ से ज्यादा इंटरनेट उपयोक्ता कभी भी कोई अनूठी कहानी लिख सकते हैं।
जानकारों के मुताबिक सोशल मीडिया चंद वर्षों में पब्लिसिटी के तमाम माध्यमों में अगुवा होगा। सोशल मीडिया के जरिए प्रचार न केवल आसान बल्कि दूसरे कई माध्यमों पर प्रचार की तुलना में सस्ता है। इन मंचों पर प्रचार के कई नए तरीके इजाद किए जा रहे हैं। हाल में आमिर खान की फिल्म ‘तलाश’ या सलमान खान की फिल्म ‘एक था टाइगर’ का डिजीटल पोस्टर भी इन नए तरीकों की श्रृंखला में देखा जा सकता है।
बॉलीवुड हस्तियां भी सोशल मीडिया के जरिए जुड़े अपार प्रशंसकों की ताकत को समझ रही हैं। अमिताभ बच्चन, सलमान खान, प्रियंका चोपड़ा, शाहरुख खान, आमिर खान, करण जौहर और महेश भट्ट जैसी सभी नामचीन बॉलीवुड हस्तियां ट्विटर पर हैं। अमिताभ-शाहरुख-आमिर और प्रियंका के ट्विटर पर अभी ही 20 लाख से ज्यादा फॉलोवर्स हैं। प्रियंका चोपड़ा अपनी फिल्म ‘तेरी मेरी कहानी’ के ट्रेलर तक के रिलीज होने की ख़बर भी ट्विटर पर देती हैं तो आमिर अपने टेलीविजन कार्यक्रम सत्यमेव जयते को प्रचारित करने के लिए ट्विटर का डेढ़ साल बाद इस्तेमाल करने से नहीं चूकते। भविष्य में फॉलोवर्स की अपार संख्या दूसरी बॉलीवुड हस्तियों को भी इन मंचों पर सक्रिय करेगी।
निश्चित रुप से देश में 100 साल में सिनेमा उद्योग का चेहरा पूरी तरह बदल चुका है। आज हर साल 1000 से ज्यादा फिल्मों का यहां निर्माण होता है। उद्योग चैंबर एसोचैम के मुताबिक भारतीय फिल्म उद्योग का राजस्व पिछले साल के 8190 करोड़ की तुलना में 56 फीसदी बढ़कर 2015 तक 12,800 करोड़ रुपए हो जाएगा। देश में 12,000 से ज्यादा थिएटर स्क्रीन, 400 से ज्यादा प्रोडक्शन हाउस और विशाल दर्शक संख्या है। इंटरनेट की सुविधा इस विशाल दर्शक संख्या में और बढ़ोतरी करेगी, क्योंकि मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखना महंगा सौदा है, जबकि छोटे शहरों में पूरा परिवार के एक साथ हर नई फिल्म देखने थिएटर तक जाने की रवायत नहीं है।
आज फिल्मों का अर्थशास्त्र व्यवहारिक रुप में बड़े प्रोडक्शन हाऊस के इर्दगिर्द सिमट गया है। स्वतंत्र निर्माताओं के लिए अपनी फिल्म रिलीज कराना लोहे के चने चबाना सरीखा है। लेकिन भविष्य में सोशल मीडिया के मंच इस स्थिति को बदल सकते हैं। यूट्यूब ने फिल्मों के प्रदर्शन के लिए बॉक्स ऑफिस चैनल की शुरुआत की है, जहां जल्द छोटे बजट की कई फिल्में दिख सकती हैं। फिल्म के ऊपर लगे विज्ञापनों से होने वाली आय निर्माता और यूट्यूब के बीच बांटे जाने का प्रावधान है। याहू ने भी भारतीय फिल्मों के लिए नेट पर अपना अलग चैनल शुरु किया है। यूट्यूब ‘डिब्ब बंद’ फिल्मों के लिए वरदान साबित हो सकती है। ‘डिब्बा बंद’ फिल्में यानी वो फिल्में, जो या तो पूरी होने के बावजूद वितरकों के न खरीदे जाने से दर्शकों तक नहीं पहुंच पायीं या आखिरी मौकों पर वित्तीय प्रबंध न होने के चलते अधूरी रह गईं। दो साल पहले बॉलीवुड फिल्म ‘स्ट्राइकर ’ को थिएटर के साथ यूट्यूब पर भी रिलीज किया गया था। छोटे निर्माताओं के लिए फिल्म के अधिक प्रिंट रिलीज करना संभव नहीं है। बिना स्टार वैल्यू के विदेशों में फिल्म बेचना खासा मुश्किल है,सो यूट्यूब विकल्प बना। इस तरह पाइरेसी से भी बचने की कोशिश हुई। निर्देशक संजय झा कहते हैं,”सोशल मीडिया निर्माता-निर्देशक को झटके में लाखों लोगों तक पहुंचने की सुविधा देता है। अब यह आप पर है कि इस मंच का लाभ आप किस तरह लेना चाहते हैं।”
सोशल मीडिया के मंच नए फिल्मकारों के लिए हुनर प्रदर्शन का बेहतरीन जरिया बन कर उभरे हैं। फिल्म निर्माण का कखग सीख रहे युवा विद्यार्थियों की बनायी लघु फिल्में तो हज़ारों की संख्या में यहां उपलब्ध हैं। कुछ गंभीर और अलग कोशिशें भी हो रही हैं। अनुराग कश्यप जैसे निर्देशक लगातार फिल्म छात्रों से कहते भी हैं कि फिल्म बनाओ और यूट्यूब जैसे मंचों के जरिए दुनिया तक पहुंचाओ। यह ट्रेंड भविष्य में जोर पकड़ेगा क्योंकि इन प्रयोगों का एक सिरा धीरे धीरे आर्थिक पहलू से भी जुड़ रहा है।
सोशल मीडिया की लोकप्रियता की वजह से आने वाले दिनों में वेब सीरियल और वेब रिएलिटी शो का ट्रेंड भी उभार पकड़ेगा। इसकी शुरुआत हो चुकी है। कुछ दिनों पहले सोशल नेटवर्किंग साइट आईबीबो पर वेब सीरियल द हंट प्रसारित हुआ। इस सस्पेंस थ्रिलर में काम करने वाले कलाकारों से लेकर पटकथा लेखक और निर्देशक तक सभी सोशल नेटवर्किंग साइट पर ऑनलाइन ऑडिशन के जरिए चुने गए हैं।
आधुनिक किंतु सस्ते कैमरों से लेकर कंप्यूटर पर संपादन की सरल प्रकिया जैसी सर्व सुलभ तकनीक निरंतर फिल्म निर्माण को सरल बना रही है, और सोशल मीडिया इसके पूरक की तरह फिल्म के कारोबार का गणित बदलने को तैयार है। सोशल मीडिया की ‘लाइक’ और ‘शेयर’ की ताकत के बूते आने वाले दिनों में कई युवा निर्देशक सुनहरी कहानियां लिखेंगे। फिलहाल हिन्दुस्तान में सिनेमा के 100 साल पूरा होने के बीच फिल्मकारों के लिए सोशल मीडिया के नए मंचों की उपयोगिता पर बड़ी बहस की जरुरत है, क्योंकि यह तय है कि फेसबुक और यूट्यूब जैसे तमाम मंच भविष्य में सिनेमा के बनने,बिकने और दिखने के अंदाज को प्रभावित करने वाले हैं।