2 दिसम्बर 2011
भोपाल। भोपाल में 27 वर्ष पहले हुई गैस त्रासदी को लोग अब तक नहीं भुला पाए हैं, उनके जख्म अब भी हरे हैं। केंद्र व राज्य सरकार के रवैए को लेकर उनमें आक्रोश व्याप्त है और वे हादसे की बरसी पर शनिवार को अपने से बिछड़े लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ विरोध का इजहार करेंगे। भोपाल के लिए दो-तीन दिसम्बर, 1984 की रात काल बनकर आई थी। इस रात यूनियन कार्बाइड संयंत्र से रिसी जहरीली गैस ने तीन हजार से ज्यादा लोगों को मौत की नींद सुला दिया था, वहीं लाखों लोगों को तरह-तरह की बीमारियों ने अपनी चपेट में ले लिया था।
'ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन' की रचना ढींगरा बताती हैं कि हादसे में मारे गए लोगों के परिजनों को अब तक वाजिब मुआवजा नहीं मिला है। गैस के दुष्प्रभाव के कारण अब भी लोग मर रहे हैं लेकिन सरकार उन्हें गैस पीड़ित मानने को तैयार नहीं है। सरकार लगातार आंकड़ों को छुपा रही है। यही कारण है कि हादसे की 27वीं बरसी पर रेल रोको आंदोलन शुरू किया जा रहा है। उनकी मांग है कि राज्य सरकार सर्वोच्च न्यायालय में सही आंकड़े पेश करे।
अनिश्चितकालीन रेल रोको आंदोलन को गैस पीड़ितों के लिए संघर्षरत पांच संगठनों डॉव -कार्बाइड के खिलाफ बच्चे, भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ, भोपाल गैस पीड़ित महिला-पुरुष संघर्ष मोर्चा, भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा, भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन का समर्थन प्राप्त है।
भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन ने शनिवार को मुख्यमंत्री के आवास पर पहुंचकर ज्ञापन सौंपेंगे। संगठन के अब्दुल जब्बार का कहना है कि गैस हादसे से 15 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं, वहीं पौने छह लाख लोग बीमार हैं। इन सभी का मुआवजा मिलना चाहिए। उनकी मांग है कि नए तथ्यों के आधार पर राज्य सरकार हस्तक्षेप करे। गैस पीड़ितों को कम से कम पांच लाख व मृतकों के परिजनों को 20 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाना चाहिए।
गैस पीड़ितों के लिए आंदोलन करने वाली सहयोग संघर्ष समिति की साधना कार्डिक ने केंद्र व राज्य सरकारों पर पीड़ितों को धोखा देने का आरोप लगाया है। उनका संगठन शनिवार को दोपहर में एक सभा का आयोजन कर हादसे में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करेगा।
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