2 अप्रैल 2012
नई दिल्ली | पिछले एक साल के दौरान मार्च में दिल्ली की हवा धूल कणों के कारण सबसे अधिक प्रदूषित रही, जबकि दीवाली में जलाए गए पटाखों के कारण भी प्रदूषण का स्तर काफी ऊंचा रहा, जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ा।
पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटीअरालॉजी (आईआईटीएम) द्वारा 23 फरवरी से 22 मार्च के बीच कराए गए विश्लेषण के अनुसार, हवा में प्रदूषण के कणों की मौजूदगी 17 मार्च के आसपास 'मध्यम' से गिरकर 'बेहद खराब' स्थिति में पहुंच गई।
आईआईटीएम केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान की एयर क्वालिटी फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (एसएएफएआर) परियोजना के तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 10 अलग-अलग मौसम स्टेशनों के जरिये वातावरण में प्रदूषण की निगरानी करता है।
हाल के अध्ययन के अनुसार, हवा में प्रदूषित कणों की मौजूदगी में हालांकि कमी आ रही है, लेकिन यह अब भी सामान्य से 20-30 प्रतिशत अधिक है। ये वे कण हैं, जिनकी हवा में मौजूदगी के कारण दृश्यता कम होती है और आसमान धुंधला रहता है। ये सांस के माध्यम से फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
एसएएफएआर के कार्यक्रम निदेशक गुफ्रान बेग ने आईएएनएस से कहा, "हवा में मौजूद कण दृश्यता को प्रभावित करते हैं, लेकिन इनका असर लोगों के स्वास्थ्य पर भी गम्भीर रूप से हो रहा है। ये कण सांस के जरिये लोगों के फेफड़ों तक पहुंचकर उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं।"
दिल्ली में प्रदूषण का स्तर दीवाली के दौरान जलाए गए पटाखों के कारण बहुत अधिक रहा। बेग के अनुसार, पटाखों से निकले प्रदूषण धूल कणों के प्रदूषण से अधिक खतरनाक हैं।
पटाखों के कारण होने वाले प्रदूषण से आंख, नाक, गले व फेफड़े में खुजली, कफ, छींक, नाक बहने या सांस उखड़ने की समस्या हो सकती है। यह फेफड़ों को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है और अस्थमा तथा हृदय रोगियों की मुश्किलें बढ़ा सकता है।
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