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दुर्गा पूजा में बालिका पूजन का महात्म्य

balika pujan in durga pujan
पं.विजय पाठक

नवरात्रि बालिका पूजन के बिना पूर्ण नहीं मानी जाती। हमारे शास्त्रों में बालिका पूजन को अत्याधिक अहमियत दी गई है। शास्त्रों के मुताबिक जिस जगह सभी कन्याओं की पूजा होती है,वह भूमि परम पावन है। विशेष बात यह कि बालिका पूजन में कहीं जाति का कोई भेद नहीं रखा गया और सभी कन्याओं को समान रुप से पूज्य माना गया। शास्त्रों में कहा गया है कि कन्या पूजन में जातिभेद नरक का द्वारा खोलता है।
नवरात्रों में बालिका पूजन का विशेष उल्लेख है,क्योंकि यह पर्व मां दुर्गा से संबधित है। लेकिन, आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो बालिका पूजन का अर्थ यही है कि भक्त कन्याओं को मान सम्मान दे, उनके महत्व और उनकी समाज में भूमिका को समझे। नवरात्र पर्व के साथ दुर्गावतरण की कथा तथा कन्या-पूजा का विधान जुड़ा हुआ है और यह उसका धार्मिक और सामाजिक पक्ष है।

बालिका पूजन के संदर्भ में दुर्गा शप्तसती में लिखा है कि श्री दुर्गा के भक्त को देवी की अतिशय प्रसन्नता के लिए नवरात्रि में अष्टमी अथवा नवमी को कुमारी कन्याओं को भोजन अवश्य कराना चाहिए। इन कुमारियों की संख्या 9 हो तो अतिउत्तम अन्यथा कम से कम दो तो होनी ही चाहिए। किंतु भोजन करने वाली कन्याएं दो वर्ष से कम तथा 10 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छह वर्ष की कालिका, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा के समान मानी जाती है।

बालिका पूजन के दौरान इन कुमारियों के लिए नमस्कार मंत्र हैं। इनका उल्लेख भी दुर्गा शप्तशती में है। 1-कुमार्य्यै नम: 2-त्रिमूर्त्यै नम: 3-कल्याण्यै नमं: 4-रोहिण्यै नम: 5-कालिकायै नम: 6-चण्डिकायै नम: 7-शाम्भव्यै नम: 8-दुगायै नम: 9-सुभद्रायै नम:

पूजा करने के बाद जब कुमारी देवी भोजन कर ले तो उनसे अपने सिर पर अक्षत छुड़वाएं और उन्हें दक्षिणा दें। यूं तो आधुनिक काल में रुपए देना एक रिवाज बन गया है,लेकिन संभव हो तो कुछ विशेष प्रकार की भेंट दें। मसलन पहला दिन है तो भक्त कुमारी को पुष्प या पुष्पाहार की भेंट दे और संभव हो तो सजने संवरने का सामान दें। दूसरे दिन खट्टे फलों को छोड़कर कोई फल अवश्य दे। तृतीय दिन मिष्ठान का अत्याधिक महत्व बताया गया है। संभव हो तो हलवा, खीर या मीठे चावल बनाकर दे। चौथे दिन कपड़े से मां दुर्गा को प्रसन्न किया जा सकता है। कपड़ा छोटा-बड़ा कैसा भी हो सकता है। पांचवे दिन देवी से सौभाग्य और संतान प्राप्ति की मनोकामना की जाती है। अत: कन्याओं को पाँच प्रकार की श्रृंगार सामग्री देना अत्यंत शुभ होता है। छठे दिन खिलौने या मनोरंजन से संबधित सामग्री दी जा सकती है।  सातवाँ दिन माँ सरस्वती के आह्वान का होता है। अत: इस दिन कन्याओं को शिक्षण सामग्री दी जानी चाहिए।  आठवाँ दिन यानी अष्टमी का है और यह नवरात्रि का सबसे विशेष एवं पावन दिन माना जाता है। इस दिन अगर कन्या का अपने हाथों से श्रृंगार किया जाए तो देवी विशेष आशीर्वाद देती है। इस दिन कन्या के दूध से पैर पूजने चाहिए। पैरों पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए। इस दिन कन्या को भोजन कराना चाहिए और यथासामर्थ्य कोई भी भेंट देनी चाहिए। हर दिन कन्या-पूजन में दक्षिणा अवश्य दें। नौवे यानी नवदुर्गा के अंतिम दिन खीर, ग्वारफली की सब्जी और दूध में गूँथी पूरियाँ कन्या को खिलानी चाहिए। उसके पैरों में महावर और हाथों में मेहँदी लगाने से देवी पूजा संपूर्ण होती है। अगर आपने घर पर हवन का आयोजन किया है तो उनके नन्हे हाथों से उसमें समिधा अवश्य डलवाएँ। उसे इलायची और पान का सेवन कराएँ। इस परंपरा के पीछे मान्यता है कि देवी जब अपने लोक जाती है तो उसे घर की कन्या की तरह ही बिदा किया जाना चाहिए। अगर सामर्थ्य हो तो नौवें दिन लाल चुनर कन्याओं को भेंट में दें। उन्हें दुर्गा चालीसा की छोटी पुस्तकें भेंट करें।

इस तरह बालिका पूजन करने पर महामाया भगवती अत्यंत प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को सांसारिक कष्टों से मुक्ति दिलाती हैं।

 

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