कलाकार : अर्जुन रामपाल, अभय देओल, मनोज बाजपेयी, अंजलि पाठक, ईशा गुप्ता, ओम पुरी
निर्माता : सुनील लुल्ला
निर्देशक : प्रकाश झा
गीत : इरशाद कमाल, तरबाज, आशीष साहू, सलीम-सुलेमान
इस हफ्ते दशहरे के अवसर पर रिलीज हुई फिल्म 'चक्रव्यूह' है। इसके डायरेक्टर प्रकाश झा हैं। अगर प्रकाश झा की फिल्मों की बात की जाये तो प्रकाश झा हमेशा अलग मुद्दों पर ही फिल्म बनाते हैं। उनकी फिल्में किसी ना किसी ठोस विषय पर ही आधारित होती हैं। इससे पहले प्रकाश झा ने गंगाजल, राजनीति, आरक्षण जैसी कई सफल फिल्में बनायी हैं। लेकिन इस बार प्रकाश झा की फिल्म 'चक्रव्यूह' नक्सलवाद पर आधारित है इससे पहले नक्सलवाद पर कई फिल्में बनी है लेकिन वो बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा नहीं चली। क्योंकि दर्शकों को आजकल कामेडी,या तो मसाला फिल्में पंसद आती हैं। अगर 'चक्रव्यूह' की बात की जाये तो 'चक्रव्यूह बॉक्स ऑफिस पर ठीक-ठाक रही है। नक्सलवाद पर ही फिल्म की पूरी कहानी आधारित है। और इस फिल्म को देखकर यही लगता है कि प्रकाश झा ने नक्सलवाद पर अच्छी खासी रिसर्च की है। आइये एक नजर डालते हैं फिल्म की कहानी और अन्य बातों पर।
फिल्म में आदिल खान (अर्जुन रामपाल) और कबीर (अभय देओल) अच्छे दोस्त हैं लेकिन दोनों का स्वाभाव काफी अलग है। आदिल पुलिस फोर्स में होता है और कबीर भी पुलिस फोर्स ज्वाइन करता है लेकिन किसी वजह से कबीर को पुलिस की नौकरी की छोडनी पडती है और तभी से इन लोंगों की बीच में दुरियां शुरु हो जाती है। लेकिन कुछ समय बाद इन दोनों के बीच की दुरियां खत्म हो जाती है। कबीर की पत्नी यानी ईशा गुप्ता एक पुलिस अधिकारी है। और वह भी चाहती है कि आदिल और कबीर की दोस्ती बनी रही। इसी बीच आदिल की पोस्टिंग नंदीघाट हो जाती है। और नक्सलवादियों के साथ एक मुठभेड़ आदिल घायल हो जाता है। तभी आदिल की मदद के लिये कबीर नदींघाट आता है और आदिल, कबीर मिलकर एक सीक्रेट प्लान बनाते हैं। और कबीर किसी तरह से नक्सलवादियों से मिल जाता है। कबीर का सामना यहां एरिया कमांडर राजन मनोज बाजपेयी और जूही (अंजलि पाटील) से होता है। और कुछ समय बाद कबीर इनका विश्वास हासिल कर लेता है। राजन, जूही, कबीर शहर में नक्सली नेता गोविंद सूर्यवंशी ओमपुरी को पुलिस की कस्टडी से छुड़वाने के लिए पुलिस की टीम पर हमला करते हैं। और गोविंद सूर्यवंशी को छुड़ा लेते हैं, और कबीर की मदद से आदिल इस बार राजन को पकड़ने में कामयाब हो जाता है। राजन की गिरफ्तारी के बाद कबीर को इस आंदोलन को और करीब से जानने का मौका मिलता है। और तभी कबीर आदिल का साथ छोडकर इस आंदोलन से जुड जाता है। इन सब के बाद आदिल क्या सोचता है और क्या आदिल - कबीर की दोस्ती कायम रहती है यह तो आपको फिल्म देखने के बाद पता चलेगा।
अगर फिल्म में अभिनय की बात की जाये तो फिल्म में अर्जुन रामपाल और अभय देओल का अभिनय अच्छा रहा है। अंजलि पाटील ने नक्सली कंमाडर जूही के रोल को काफी अच्छे से निभाया है। अगर मनोज बाजपेयी की बात की जाये तो मनोज का अभिनय ठीक-ठाक रहा है। और ईशा गुप्ता की एक्टिंग कोई खास नहीं रही है। ओम पुरी ने अपने किरदार के साथ पूरी तरह से न्याय किया है। फिल्म के गाने अच्छे हैं। समीरा रेड्डी का एक आइटम नंबर भी है। और अगर प्रकाश झा के डायेरेक्शन की बात की जाये तो प्रकाश झा ने पूरी फिल्म पर काफी रिसर्च की है। और उनका डायेरेक्शन काफी अच्छा रहा है।
अगर आप नक्सलवाद के बारें में तरह से जानना चाहते हैं तो यह फिल्म आप देख सकते हैं। और हां अगर आप मसाला और हास्य फिल्मों के शौकीन हैं तो यह फिल्म आपको कोई खास पंसद नहीं आयेगीं।
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