होली 2020 (Holi 2020), भारत में मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है। रंग, अबीर, गुलाल और पानी के गुब्बारों से खेली जाने वाली होली का जलवा देखते ही बनता है। ब्रज और बरसाने की निराली होली तो सुप्रसिद्ध है, जिसे देखने सुदूर विदेशों से भी लोग खिंचे चले आते हैं। वर्ष 2020 में होली 10 मार्च, दिन मंगलवार को मनाई जायेगी।
आइये होली 2020 के इस लेख के माध्यम से जानें की कब और किस प्रकार से होली मनाते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार होली का त्यौहार, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली को दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन होलिका जलाई जाती है, जिससे छोटी होली या होलिका दहन भी कहा जाता है। अगले दिन रंग, गुलाल, अबीर एक दूसरे पर डालकर और गुब्बारों में या पिचकारी में पानी भरकर एक दूसरे पर डाला जाता है, जिसे धुलेंडी कहा जाता है। धुलेंडी के अलावा इसे धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन के नाम से भी जाना जाता है।
एक दूसरे के साथ रंग खेलने का यह दौर आमतौर पर दोपहर तक चलता है। फिर लोग नहा धो कर विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट पकवान जैसे कि नमकपारे, शकरपारे, गुझिया, चाट, दही-बड़े आदि व्यंजनों को बनाया जाता है, जिन्हें लोग बड़े चाव खाते हैं और स्नेह पूर्वक अपने मित्रों-संबंधियों को खिलाते हैं। शाम के समय लोग एक दूसरे के घर मिलने के लिए भी जाते हैं। होली क्योंकि फाल्गुन के महीने में मनाई जाती है, इसलिए इसे 'फाल्गुनी' भी कहा जाता है।
होली 2020 के माध्यम से जानें होली का इतिहास। होली एक बहुत प्राचीन त्यौहार है, जिसका वर्णन प्राचीन संस्कृत साहित्य की कई महत्वपूर्ण कृतियों में मिलता है। कई प्राचीन कवियों के लिए होली काव्य रचना का प्रिय विषय रहा है। होली का वर्णन कई प्राचीन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है। जिनमें जैमिनी के पूर्व मीमांसा सूत्र और कथा ग्राह्य सूत्र प्रमुख हैं। नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण में भी होली का उल्लेख मिलता है।
विंध्य क्षेत्र में रामगढ़ नामक स्थान पर स्थित ईसा से 300 वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी होली के त्यौहार का उल्लेख किया गया है। प्राचीन भारत के कई मंदिरों की दीवारों पर भी होली के चित्र और मूर्तियाँ बनी हुई हैं। ऐसा ही 16वीं सदी का एक मंदिर प्राचीन विजय नगर की राजधानी हंपी में है, जहाँ होली के कई दृश्य हैं। उनमें राजकुमार और राजकुमारी अपने सेवकों सहित एक दूसरे पर रंग लगाते हुए दर्शाये गए हैं।
होली से कई कथाएं जुड़ीं हैं, जिनमें होलिका और प्रह्लाद की कथा को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इस कथा के अनुसार राक्षसराज हिरण्यकश्यपु का पुत्र प्रहलाद भगवान् विष्णु का परम भक्त था। उसे विष्णु-भक्ति के विमुख करने के लिए जब राक्षसराज के सभी प्रयास निष्फल हो गए तो उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को लेकर जलती हुई आग में बैठ जाने को कहा, ताकि प्रह्लाद जल कर मर जाए। होलिका को वरदान प्राप्त था कि अग्नि से उसे कोई हानि नहीं हो सकती। इसलिए वह निस्संकोच प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गयी। लेकिन होलिका का वरदान कोई काम नहीं आया और होलिका जल गयी और भगवान श्री विष्णु जी की कृपा से प्रह्लाद सकुशल आग से बाहर निकल आया।
इस घटना की याद में ही होलिका जलाकर इस त्यौहार को मनाया जाता है। होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखा जाता है। इसका प्रयोजन यह है की बुरे विचार रखकर कोई काम करने से वरदान भी निष्फल हो जाते हैं और ईश्वर अपने आस्थावान भक्तों की हमेशा मदद करते हैं।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार राधा जी के गोरे रंग से कृष्ण जी उनसे ईर्ष्या करते थे। इसी कारण उन्होंने राधा जी के चेहरे पर गुलाल मल दिया। बाल सुलभ ईर्ष्या के कारण किया गया यह काम सभी के लिए एक आनंद का विषय हो गया और फिर सभी गोप-गोपिकाओं के साथ कृष्ण जी ने रंग-गुलाल खेला, जिसे होली कहा गया।
एक पौराणिक कथा यह भी है कि राजा पृथु के समय में ‘धुण्डी’ नामक एक भयानक राक्षसी थी, जो मासूम बच्चों को पकड़कर खा जाती थी। उसे वरदान था कि कोई भी अस्त्र-शस्त्र, देवता या मनुष्य उसे नहीं मार सकेगा , लेकिन भगवान शिव के एक श्राप के कारण वह बच्चों की शरारतों से नहीं बच सकती थी। इसलिए राजा पृथु को उनके राजपुरोहित ने उपाय बताया कि फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन, सभी बच्चे अपने हाथ में एक-एक लकड़ी लेकर एक जगह इकट्ठी करें और उनमें घास फूस रखकर आग लगा दें। फिर ज़ोर-ज़ोर से आग की परिक्रमा करते हुए मंत्र पढ़ें और उस राक्षसी को नगर से बाहर खदेड़ दें। बच्चों का शोरगुल सुनकर धुण्डी आग के समीप आयी तो बच्चों ने मंत्र पढ़ते हुए उसे घेर लिया और शोरगुल करते हुए, उसपर मिट्टी-कीचड़ आदि फेंकते हुए उसे नगर से बाहर खदेड़ आये। इसके बाद धुण्डी कभी भी वापिस नहीं आयी। होलिका दहन करने का एक प्रमुख कारण यह भी है, ताकि सबके बच्चे धुण्डी से सुरक्षित रह सकें। इस तरह से होली 2020 के माध्यम से जाना आपने होली से जुड़ा इतिहास।
होली अपनेआप में विविध रंगों वाला त्यौहार है। होली के रंगों में रंग कर दुश्मन भी दोस्त बन जाता है। होली 2020 के इस लेख के माध्यम से आइये जानते हैं कि होली कितने प्रकार से मनाई जाती है। कुछ मुख्य स्थानों पर होली के प्रकार निम्नलिखित हैं :
जहाँ भारत भर में केवल एक दिन होली मनाई जाती है, वहीं मथुरा, वृंदावन, गोकुल, नंदगाँव और बरसाने में एक सप्ताह तक होली का त्यौहार मनाया जाता है। ख़ास बात यह है कि एक सप्ताह तक चलने वाली होली के हर दिन कुछ अलग तरह से होली मनाई जाती है। इनमें बरसाने की लट्ठमार होली बहुत प्रसिद्ध है।
वृंदावन की इस होली में शरीक होने लोग बहुत दूर-दूर से आते हैं। बाँके बिहारी मंदिर के कपाट खुलते ही भक्तों में अपने प्रभु बाँके बिहारी जी पर रंग डालने की होड़ मच जाती है। सारा माहौल रंगों और गुलाल से सराबोर नज़र आता है। इस अवसर पर सैकड़ों रंग और गुलाल का भारी मात्रा में प्रयोग किया जाता है।
फूलों की होली फाल्गुन की एकादशी को वृंदावन में मनाई जाती है। इस होली के लिए समय का पाबंद होना बहुत ज़रुरी है, क्योंकि यह होली केवल 15-20 मिनट तक ही चलती है जिसमें शाम चार बजे मंदिर के कपाट खुलते ही पुजारी, भक्त गणों पर फूलों की वर्षा कर देते हैं। यह अपनेआप में एक बहुत सुंदर और अलौकिक अनुभव होता है। होली वास्तव में प्रेम, मित्रता और सौहार्द का सुंदर त्यौहार है, इसे गरिमा पूर्ण तरीके से मना कर इसके स्नेह और सौहार्द के संदेश को हर ओर फ़ैलाने में ही इसकी सार्थकता है।
हम आशा करते हैं कि वर्ष 2020 में रंगों का त्यौहार ‘होली’ आपके लिए अत्यंत शुभ हो। हमारी ओर से आप सभी को होली 2020 की ढेर सारी शुभकामनाएं !
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