साल 2019 में कुल 5 ग्रहण घटित होंगे। इनमें 3 सूर्य ग्रहण और 2 चंद्र ग्रहण शामिल हैं। ग्रहण का दृश्य क्षेत्र भी आपको दुनिया के अलग-अलग भागो मेंं देखने को मिलेगा। सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की घटना धार्मिक, ज्योतिषीय और वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होती है। यहाँ आपको ग्रहण 2019 से संबंधित सभी जानकारी दी जा रही है।
दिनांक | समय | प्रकार | दृश्य क्षेत्र |
6 जनवरी | 05:04:08 से 09:18:46 बजे तक | आंशिक | चीन, जापान, कोरिया, रूस, मंगोलिया, प्रशांत महासागर, अलास्का |
2-3 जुलाई | 23:31:08 से 02:14:46 बजे तक | पूर्ण | चीली, अर्जेंटीना, पैसिफिक क्षेत्र |
26 दिसंबर | 08:17:02 से 10:57:09 बजे तक | वलयाकार | भारत, पूर्वी यूरोप, एशिया, उत्तरी/पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया, पूर्वी अफ्रीका |
सूचना: उपरोक्त तालिका में दिया गया समय भारतीय समयानुसार है।
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वर्ष का तीसरा और अंतिम सूर्य ग्रहण जो कि 26 दिसंबर 2019 को गुरुवार के दिन धनु राशि और मूल नक्षत्र में लग रहा है। यह सूर्य ग्रहण भारत में भी दिखाई देगा। इसलिए यहाँ पर ग्रहण का सूतक 25 दिसंबर 2019 को शाम 5:33 बजे से प्रारंभ हो जाएगा और 26 तारीख को सुबह 10:57 बजे सूर्य ग्रहण की समाप्ति के बाद समाप्त होगा।
दिनांक | समय | प्रकार | दृश्य क्षेत्र |
21 जनवरी | 08:07:34 से 13:07:03 तक | पूर्ण | प्रशांत क्षेत्र, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका |
16 जुलाई | 01:31:43 से 04:29:39 तक | आंशिक | भारत, दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया |
सूचना: उपरोक्त तालिका में दिया गया समय भारतीय समयानुसार है।
भारत में साल 2019 का दूसरा चंद्र ग्रहण दिखाई देगा जो कि 16 जुलाई को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र और धन व मकर राशि में लगेगा। इसलिए यहाँ ग्रहण का सूतक काल प्रभावी होगा। ग्रहण का सूतक 16 जुलाई को 15:55:13 बजे से प्रारंभ हो जाएगा और यह अगले दिन यानि 17 जुलाई को 04:29:50 बजे समाप्त होगा।
सूर्य एवं चंद्र ग्रहण के समय कई बातों का ध्यान रखा जाता है। सूर्य ग्रहण को कभी भी नग्न आँखों नहीं देखना चाहिए। क्योंकि इस दौरान सूर्य से निकलने वाली किरणें घातक होती हैं जो आँखों के रेटीना को हानि पहुँचाती हैं। ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को बहुत ही सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। क्योंकि इसका सीधा प्रभाव गर्भ में पल रहे शिशु पर पड़ता है। धार्मिक दृष्टि से भी ग्रहण के दैरान कई कार्यों को करने को मनाही है। ख़ासकर सूतक के दौरान किसी भी नए कार्य की शुरुआत नहीं की जाती है।
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहण राहु-केतु के कारण होता है। इस दौरान सूर्य और चंद्रमा दोनों राहु केतु से पीड़ित होते हैं। किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में भी ग्रहण दोष हो सकता है। जब किसी व्यक्ति की लग्न कुंडली के द्वादश भाव में सूर्य या चंद्रमा के साथ राहु या केतु में से कोई एक ग्रह बैठा है, तो ग्रहण दोष बनता है। इसके अलावा यदि सूर्य या चंद्रमा के भाव में राहु-केतु में से कोई एक ग्रह स्थित हो, तो उस स्थिति में भी ग्रहण दोष बनता है। ग्रहण दोष से पीड़ित जातकों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि सागर मंथन के दौरान निकले अमृत रत्न को राहु नामक राक्षस ने देवताओं का भेष बदलकर पी लिया था। लेकिन उसके इस भेद को सूर्य और चंद्रमा ने खोल दिया। तब भगवान विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से उस अधर्मी राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया। अमृत पीने के कारण उसकी मृत्यु नहीं लेकिन उसका सिर राहु और धड़ केतु ग्रह के रूप में सौर मंडल में स्थापित हो गए। दोनों ही छाया ग्रह हैं। राहु-केतु सूर्य और चंद्रमा इस बात बदला ग्रहण के रूप में लेते हैं।
खगोल विज्ञान सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण को एक खगोलीय घटना मानता है। जिसके तहत जब सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है तो इस घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। इसमें चंद्रमा पृथ्वी पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों को रोकता है। वहीं जब सूर्य एवं चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है तो यह चंद्रमा पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों को रोकती है। इस घटना को चंद्र ग्रहण के नाम से जाना जाता है।
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