उतनी देर
बीच रात
नींद जब टूटी
नीम अँधेरा घर
भरा था
उसकी कुनमुनाहट से
हो सकता है
नींद उसी से टूटी हो
साँस साधे किया इन्तजार
उसके बन्द होने का
वह चलती रही
जैसे शाश्वत हो
पहुँची उसके पास
सटकर खड़ी रही पलंग से
वह बाईं करवट सोई थी
हमेशा की तरह
दाईं करवट सोना छोड़ दिया था उसने
पिता के जाने के बाद
दाईं बाजू खाली थी
बाकी दुनिया
अभी भी बाईं तरफ थी
हालाँकि माँ को पता नहीं था
कि बाईं करवट सोना
फायदेमन्द है सेहत के लिए
‘कुछ चाहिए?’
पूछने पर
कुछ नहीं बोली थी माँ
अपनी ओर बढ़े उसके हाथ को थामे थी मैं
उसी से खींच लिया था माँ ने मुझे
अपनी बाईं तरफ
सोने लायक जगह थी वहाँ
याद नहीं आया एक भी मौका
इस तरह
माँ की बगल में सोये होने का
भाई के पैदा होने से पहले
दो साल तक
सोती रही होऊँगी उसकी बगल में, गोद में भी
स्मृति बननी शुरू नहीं हुई होगी अभी तब तक
देखते रहे हम
लगातार एक दूसरे को
पता नहीं
उसके मन में क्या था?
देखती रही मैं अपलक
इसी डर में
कि जब तक उसे देखूँगी
जिन्दा रहेगी माँ
उतनी देर.
बिना उस चीज को देखे
चीजों को देखना छोड़ दिया था
उसकी आँखों ने
टिक नहीं पाती थीं वे
अपनी पसन्द की चीज पर
मँडराती थी
चीजों के इर्द-गिर्द
इधर-उधर, ऊपर-नीचे
किसी भी चीज पर
टिकी मिल जा सकती थीं
उसकी आँखें
घंटों टिकी रह सकती थीं वे
वहाँ
उस चीज पर
बिना उस चीज को देखे
अभी-अभी जन्मे बच्चे की आँखों सी
फिसलती आँखों से
देखती हर चीज को
खुले बरामदे में खिले गुलाबों को दिखाने पर
वह हँसती और देखती ऊपर को
गुलाब नहीं होते जहाँ,
होता आसमान
जिसे भी वे
शायद ही देखतीं
देखो, कौन आया है
पूछने पर उसके चेहरे पर
फैल जाती पहचान की हँसी.
एक दिन
कुछ भी को देखना बन्द कर दिया था
माँ की आँखों ने
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