17 फरवरी 2013
नई दिल्ली। बॉलीवुड अभिनेता विवेक ओबेरॉय ने अपने 10 साल के फिल्मी करियर में कई भूमिकाएं की हैं और कभी सफलता तो कभी असफलता के दौर से गुजरे हैं। वह कहते हैं कि समाज की मदद करना और उसकी बेहतरी की दिशा में काम करने से ज्यादा संतोष की बात कोई और नहीं है।
समाजिक कार्यो में सहभागिता और धर्मार्थ कार्यो में सहयोग विवेक को सफलता और असफलता के पैमाने से अलग करता है।
विवेक ने आईएएनएस को दिए एक साक्षात्कार में कहा, "समाज की भलाई के लिए काम करते हुए मैंने सीखा कि बॉक्स ऑफिस पर सफल या असफल होने से ज्यादा कई महत्वपूर्ण काम मेरी जिंदगी में हैं। मैंन सीखा कि जिंदगी में कुछ अलग और अच्छा करना चाहिए और इससे मुझे जिस संतोष का अनुभव हुआ वह कमाल का था।"
विवेक कई वर्षो से धर्मार्थ कार्यो से जुड़े हुए हैं लेकिन वह इस बारे में ज्यादा बातें नहीं करते हैं।
साल 2006 में आए सुनामी से तमिलनाडु में तबाह हुए गावों को फिर से बसाने में विवेक ने काफी योगदान दिया है।
विवेक वृंदावन में एक विद्यालय चलाते हैं। उनके द्वारा शुरू की गई देवी परियोजना के अंतर्गत घरवालों द्वारा त्याग दी गई बच्चियों की देखभाल की जाती है।
विवेक कहते हैं, "समाजिक कार्यो से मुझे वास्तविक खुशी मिलती है। काफी लोगों ने मुझसे इन सब के बारे में बताने को कहा जब 'फोर्ब्स' पत्रिका ने दुनिया के 40 बड़े परोपकारियों में मेरा नाम शामिल किया था। मेरा मानना है कि कहने से ज्यादा करना मायने रखता है, न कि पहचान।"
बॉलीवुड में हालांकि काम और पहचान दोनों का महत्व है। विवेक कहते हैं कि वह अब तक खुद को बॉलीवुड में नया समझते हैं और पहली फिल्म की तरह ही हर फिल्म के लिए उत्साहित होते हैं।
अनुभवी अभिनेता सुरेश ओबरॉय के बेटे विवेक ओबेरॉय हाल ही में एक बेटे के पिता बने हैं। निर्देशक राम गोपाल वर्मा की फिल्म 'कंपनी' से उन्होंने बॉलीवुड में अपना करियर शुरू किया था।
विवेक ने अपने अब तक के करियर में 'साथिया' 'युवा' 'मस्ती' 'काल' 'ओमकारा' जैसी फिल्मों में काम किया है।