26 अक्टूबर 2013
अबु धाबी|
महान फिल्मकार एम. एस. सथ्यु ने फिल्म 'गर्म हवा' बनाने के बाद चालीस सालों में इसे न जाने कितनी ही बार देखा और हर बार इसे देखकर भावुक हुए। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद के दौर की पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्म 'गर्म हवा' का प्रदर्शन जब अबु धाबी फिल्म महोत्सव में किया गया, तब भी सथ्यु हर बार की तरह भावुक हो उठे।
फिल्म प्रदर्शन के बाद उपस्थित दर्शकों का भी हाल कमोबेश सथ्यु जैसा ही रहा। भारतीय सिनेमा के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में अबु धाबी फिल्म महोत्सव के दौरान भारतीय सिनेमा श्रेणी के विशेष कार्यक्रम में 'गर्म हवा' का प्रदर्शन किया गया।
फिल्म के प्रदर्शन के बाद दर्शकों ने सथ्यु की जुबानी इस फिल्म के निर्माण और प्रदर्शन की कठिन परीक्षा का हाल सुना। फिल्म बंटवारे के बाद भारत में मुसलमानों की दुर्दशा को चित्रित करते हुए बेहद कम लागत में बनाई गई थी। फिल्म को प्रदर्शन के लिए भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड की मंजूरी के लिए काफी पापड़ बेलने पड़े थे।
सथ्यु (83) ने शुक्रवार को यहां उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा, "यह फिल्म सीधे दिल पर लगने वाली है। मुझे खुद भी नहीं पता कि मैंने कितनी बार यह फिल्म देखी है, लेकिन हर बार मैं फिल्म देखकर भावुक हुआ हूं।"
अबु धाबी फिल्म महोत्सव में सथ्यु के भावुक हो जाने का एक कारण यह भी था कि फिल्म का प्रदर्शन हिंदी सिनेमा इतिहास के अग्रणी अभिनेता बलराज साहनी की जन्मशती के अवसर पर किया गया। साहनी का निधन फिल्म 'गर्म हवा' की डबिंग पूरी करने के एक दिन बाद ही हुआ था।
'गर्म हवा' (स्कॉर्चिग विंड्स) आगरा में रहने वाले एक भारतीय मुस्लिम परिवार की कहानी है। फिल्म में दिखाया गया है कि देश बंटवारे के बाद जहां कई मुस्लिम परिवार कठिनाइयों से तंग आकर भारत छोड़ पाकिस्तान जा बसने को मजबूर होते हैं, वहीं भारत में ही रहने का दृढ़ निश्चय कर चुके मुस्लिम परिवारों को क्या-क्या मुश्किलें सहनी पड़ती हैं।