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उप्र में संजय जोशी बिन भाजपा की राह नहीं आसान

no easier way to the bjp without sanjay joshi

13 जून 2012

लखनऊ । भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से संजय जोशी की विदाई का असर कहीं और पड़े या न पड़े, लेकिन इसका सीधा असर उत्तर प्रदेश की राजनीति पर पड़ना तय दिख रहा है। पार्टी के पदाधिकारियों की मानें तो पार्टी को आगामी लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को या तो संजय जोशी को वापस लाना होगा या फिर उनके जैसी क्षमता वाले एक व्यक्ति की खोज करनी होगी जो सबको साथ लेकर चलने में सक्षम हो।

राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बाद पार्टी से ही संजय जोशी की विदाई के साथ ही उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए संकट का दौर शुरू हो गया है। जोशी की विदाई के बाद उत्तर प्रदेश भाजपा के बड़े नेता जहां अपना मुंह खोलने के लिए तैयार नहीं हैं वहीं दूसरी ओर आम कार्यकर्ताओं के भीतर संजय जोशी के जाने की पीड़ा साफ तौर पर महसूस की जा सकती है।

पार्टी के एक नेता विश्वास भरे लहजे में कहते हैं, "विधानसभा चुनाव में संजय जोशी की भूमिका और उनकी सफलता-असफलता को लेकर अलग-अलग राय हो सकती है लेकिन एक बात जरूर है कि संजय जोशी के जाने के बाद केंद्र और राज्य के बीच जो कड़ी थी, वह जरूर टूट गई।"

उन्होंने कहा कि जोशी के लखनऊ प्रवास के दौरान कार्यकर्ता उनसे सीधे मिलकर अपनी बात कह पाते थे लेकिन उनके जाने के बाद अब कार्यकर्ताओं की कौन सुनेगा।

कानपुर से लखनऊ कार्यालय पहुंचे भाजपा कार्यकर्ता राजेश वर्मा ने कहा, "संजय जोशी की विदाई से पार्टी को नुकसान होगा। कार्यकर्ताओं की सुनने वाला कोई नहीं बचा है। दिन भर पार्टी कार्यालय के चक्कर काटते रहिए लेकिन सब अपनी साख बचाने में ही जुटे हैं।"

वाराणसी में पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा, "भाई साहब (जोशी) कार्यकर्ताओं की हमेशा सुनते थे। भाजपा की सेहत सुधारने की जितनी कोशिश की जाती है, मठाधीश उसे ले डूबोते हैं।"

इस पदाधिकारी ने साफ तौर पर कहा, "भइया यह भाजपा है। यह लौटने वालों को हजम नहीं कर पाती है और इसी लिहाज से संजय जोशी की विदाई की घटना न तो अप्रत्याशित दिखती है और न ही नई।"

प्रदेश के बड़े नेताओं से सम्पर्क करने पर कुछ ने तो इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से मना कर दिया जबकि कुछ ने दबी जुबान से यह भी स्वीकार किया कि किसी एक व्यक्ति के चलते किसी को हटाना यह अच्छे चलन की शुरूआत नहीं है। इससे पार्टी को नुकसान ही होगा।

 

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