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कचरे से बिजली बनाने की परियोजना पर विवाद

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22 मई 2011

नई दिल्ली। ठोस कचरे से बिजली बनाने वाला देश का पहला संयंत्र जुलाई से काम करना शुरू कर देगा। इस परियोजना स्थल के आस-पास रहने वाले लोग हालांकि 200 करोड़ की परियोजना का स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण विरोध कर रहे हैं।

तिमारपुर ओखला म्युनिसिपल वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट का निर्माण सरकारी निजी भागीदारी के तहत जिंदल आईटीएफ इकोपॉलिस और दिल्ली नगर निगम द्वारा किया जा रहा है।

परियोजना पर दक्षिण दिल्ली में ओखला के दो एकड़ क्षेत्र में काम चल रहा है और यह 70 फीसदी पूरा हो चुका है।

परियोजना के पूरा होने पर इससे 16 मेगावाट बिजली पैदा होगी, जो छह लाख घरों के लिए काफी होगी। परियोजना में 2,050 टन कचरे का उपयोग होगा, जो दिल्ली में रोज पैदा होने वाले कचरे का एक चौथाई है।

परियोजना को लेकर हालांकि जामिया नगर, ओखला, जसोला, सुखदेव विहार, न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी और आस पास के कई इलाकों के लोग चिंतित हैं। उनका मानना है कि इस परियोजना की चिम्नी से जहरीला धुआं निकलेगा, जिससे स्वास्थ्य और पर्यावरण पर बुरा असर पड़ेगा।

स्थानीय लोगों ने परियोजना के विरोध में दिल्ली उच्च न्यायालय में 2009 में एक जनहित याचिका लगाई थी, जिसपर सोमवार को सुनवाई होनी है।

जिंदल आईटीएफ इकोपॉलिस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अल्लार्ड एम. नूई ने कहा कि परियोजना से स्वास्थ्य या पर्यावरण को कोई खतरा नहीं है।

उन्होंने कहा कि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उन्होंने परियोजना में दुनिया के सबसे आधुनिक उपकरण लगाएं हैं।

पिछले महीने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने भी परियोजना स्थल का दौरा किया था।

उन्होंने कहा कि परियोजना का काम 70 फीसदी पूरा हो चुका है। वह कोशिश करेंगे कि इसमें प्रदूषण कम करने वाले अत्याधुनिक साधनों का इस्तेमाल हो। उन्होंने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से भी परियोजना पर एक विस्तृत रिपोर्ट बनाने के लिए कहा।

पर्यावरणवादियों ने परियोजना को न सिर्फ आस पास के लोगों के लिए बल्कि पूरी दिल्ली के लिए नुकसानदेह बताया है।

टॉक्सिक एलायंस वाच के गोपाल कृष्णा ने कहा, "प्रदूषकारी तत्व डायोक्सिन के कारण यह परियोजना पूरी दिल्ली के लिए नुकसानदेह है। किसी भी जगह कचरे को जलाने वाली भट्ठी का इस्तेमाल होना उचित नहीं है। इसकी जगह कचरा प्रबंधन के लिए जैविक उपचार का तरीका आजमाया जाना चाहिए।"


 

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