11 जनवरी 2014
कोलकाता|
भारत के अग्रणी उर्दू विद्वान और शायर शमसुर रहमान फारुकी का कहना है कि बॉलीवुड फिल्मों के गीत किसी भी तरह से शायरी या उर्दू कविता नहीं कहला सकते, भले ही वे उर्दू शब्दों का प्रयोग ही क्यों न कर लें। उन्होंने कहा, "कुछ पुरानी फिल्मों में थोड़ी शायरी थी, लेकिन नई में तो एक में भी कत्तई नहीं है।"
यहां चल रहे एपीजे कोलकाता लिटरेरी फेस्टिवल के एक सत्र में शुक्रवार को फारुकी ने दावा किया कि उर्दू में रचना कार्य बढ़ा है लेकिन उनमें से अधिकांश की गुणवत्ता खेदजनक है।
उर्दू साहित्य में अपने योगदान के लिए वर्ष 1996 में प्रतिष्ठित सरस्वती सम्मान पाने वाले फारुकी ने कहा, "यहां बहुत सी पत्रिकाएं हैं.500 से 600 पत्रिकाएं हैं, लेकिन गुणवत्ता बेहद खराब है।"
उनकी बात को दोहराते हुए हिंदी के प्रसिद्ध कवि अशोक वाजपेयी ने कहा कि हिंदी साहित्य भी इसी स्थिति से गुजर रहा है।
इस आलोचक के अनुसार, एक अन्य मुद्दा विशिष्ठ पाठ्यक्रमों के लिए विषय के अध्ययन पर प्रतिबंध होना है।
उन्होंने कहा, "लोग सिर्फ वही पढ़ते हैं जो उनके पाठ्यक्रम में है..उससे परे कुछ नहीं पढ़ते।"