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शनि प्रदोष व्रत का महत्व

The importance of shani pradosh Vrat

पं. पुनीत पाण्डे

सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व माना गया है। चैत्रादि प्रत्येक माह के शुक्ल और कृष्ण दोनों पक्षों के तेरहवें दिन अर्थात त्रयोदशी को प्रदोष व्रत कहलाता है और इस दिन किए जाने वाले व्रत को प्रदोष व्रत की संज्ञा दी गयी है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना की जाती है। प्रदोष व्रत का पालन सफलता, शान्ति और समस्त इच्छाओं की पूर्ति करने वाला है। कहते हैं कि इस दिन शिव के किसी भी रूप का दर्शन सारे अज्ञान का नाश कर देता है और साधक को शिव की कृपा का भागी बनाता है।

जब यह प्रदोष व्रत शनिवार के दिन पड़ता है, तो इसे शनि प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष 30 अप्रैल को शनि प्रदोष व्रत पड़ रहा है। शनिदेव नवग्रहों में से एक हैं और शास्त्रों में वर्णन है कि इनका कोप अत्यन्त भयंकर होता है। किन्तु पुराणों के अनुसार शनि प्रदोष व्रत करने से शनि देव का प्रकोप शान्त हो जाता है। जिन लोगों पर साढ़ेसाती और ढैया का प्रभाव हो, उनके लिए शनि प्रदोष व्रत करना विशेष हितकारी माना गया है। इस दिन विधि-विधान से यह व्रत करना शनिदेव की कृपा प्राप्त करने का एक शास्त्रसम्मत आसान उपाय है। ऐसा करने से न सिर्फ़ शनि के कारण होने वाली परेशानियाँ दूर होती हैं, बल्कि शनिदेव का आशीर्वाद भी मिलता है जिससे सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। शनि प्रदोष वाले दिन जो जातक शनि की वस्तुओं जैसे लोहा, तैल, तिल, काली उड़द, कोयला और कम्बल आदि का दान करता है, शनि-मंदिर में जाकर तैल का दिया जलाता है तथा उपवास करता है, शनिदेव उससे प्रसन्न होकर उसके सारे दुःखों को हर लेते हैं।

शास्त्रों में वर्णित है कि संतान की कामना रखने वाले दम्पत्ति को शनि प्रदोष व्रत अवश्य रखना चाहिए। इसमें कोई संशय नहीं है कि यह व्रत शीघ्र ही संतान देने वाला है। संतान-प्राप्ति के लिए शनि प्रदोष वाले दिन सुबह स्नान करने के पश्चात पति-पत्नी को मिलकर शिव-पार्वती और पार्वती-नन्दन गणेश की पूजा-अर्चना करनी चाहिए और शिवलिंग पर जलाभिषेक करना चाहिए। इसके उपरान्त शनिदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए किसी पीपल के वृक्ष की जड़ में जल चढ़ाना चाहिए। साथ ही उन्हें पूरे दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किए उपवास करना चाहिए। ऐसा करने से जल्दी ही संतान की प्राप्ति होती है।

शनि प्रदोष व्रत में साधक को संध्या-काल में भगवान का भजन-पूजन करना चाहिए और शिवलिंग का जल और बिल्व की पत्तियों से अभिषेक करना चाहिए। साथ ही इस दिन महामृत्युंजय-मंत्र के जाप का भी विधान है। इस दिन प्रदोष व्रत कथा का पाठ करना चाहिए और पूजा के बाद भभूत को मस्तक पर लगाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जो साधक इस तरह शनि प्रदोष व्रत का पालन करता है, उसके सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और सम्पूर्ण इच्छाएँ पूरी होती हैं।

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