Ajay Singh
गंगा एक्शन प्लान के नाम पर सैकड़ों करोड़ बहाने के बाद भी नदी संरक्षण का कार्य हुआ ही नहीं है। यह पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि सभ्यता का उद्गम स्थल यह नदी भारतीय सामाजिक और राजनीतिक जीवन के प्रदूषण का प्रतिबिंब हो।
Bharat Malhotra
सोशल मीडिया की जंग में फेसबुक की बादशाहत को चुनौती देने के लिए गूगल कुछ नया लेकर आया है. नया यानी पहले से ज्यादा, 'प्लस'.
Piyush Padey
इधऱ अपनी हालत भी दिग्गी राजा सरीखी हो गई है। कोई सीरियसली नहीं लेता। पिताजी ने बचपन से नहीं लिया। पत्नी की नजर में हम इस काबिल नहीं। बेशर्म बच्चों को शायद इस बात पर शर्म आती है। परेशानी यह है कि इन दिनों मोहल्ले वालों ने भी सीरियसली लेना बंद कर दिया है। मुझ जैसे घनघोर बुद्धिजीवी की इस तरह की बेइज्जती पहले कभी नहीं हुई। पहले मोहल्ले वाले सुनते थे। सुनते क्या थे अमल करते थे। फिर उन्होंने अमल करना बंद कर दिया। सुनना जारी रखा। वक़्त बदला तो सुनना भी बंद कर दिया। लेकिन, हां-हूं के भाव देते रहे। अपन को ऐसा लगता कि भाई लोग सुन रहे हैं। अब लोग न सुनते हैं, न हां-हूं करते हैं और न ऐसा लगता है कि वे सुन रहे हैं।
Jyoti Nanda
'रागिनी एमएमएस', 'कुछ लव जैसा' और 'स्टेनली का डब्बा'। तीनो फिल्मे एक के बाद एक देख ली। तीनों के अहम् किरदार कहीं न कहीं अपने अपने दर्द से जूझते दिखाई दिए। खोए सम्मान और आत्मविश्वास को पाने की लड़ाई लड़ते है। तीनो फिल्मे ख़त्म हो जाने के बाद गहरा असर छोडती है। देर तक जेहन में उथल पुथल मचाती है। सोचती हूं 'कुछ लव जैसा' की मधु अगर स्टेनली से मिल लेती तो उसे अपना दुःख कुछ कम लगता और अगर रागिनी के वीकेंड को जीते जी नरक की सैर बनाने वाली चुडैल जो खुद भयावह तकलीफ से गुजरने के बाद मरकर भी नहीं मरी, अगर स्टेनली से मिलती तो जरुर उसे दुनिया के क्रूर हाथो से बचाती। शायद उसे उसमे अपने बच्चे दिखते। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। यह वह प्यारा सा सुरक्षा कवच सा ख्याल है जिसकी हिंदी दर्शको को आदत है कि एक नायक होगा, जो चाहे कितनी भी तकलीफ सहे लेकिन अंत में सब दुखो को पार कर लेगा। सारी भयानकता को लील जायेगा और हम ख़ुशी ख़ुशी घर वपस चले जायेंगे। लेकिन अब ख़ुशी इतने सीधे सरल तरीके से नहीं मिलती। वह शहरी जीवन की जटिलताओ में उलझ सी गयी है। उसी उलझन को सुलझाने और मन की गहरी गांठो को एक-एक परत को खोलने से मिलती है ऐसा ही करती है यह फिल्में।
Piyush Pandey
रक्षा मंत्री एंटनी साहब कह रहे हैं कि पड़ोसी मुल्क बदला नहीं जा सकता। मार्के की बात कह रहे हैं जनाब। ये बात हमें मालूम ही नहीं थी। कई लोगों को लगता था कि पड़ोसी मुल्क भी बदला जा सकता है। अब पड़ोसी बदला नहीं जा सकता तो उसकी खराब हालत सुधारने की ज़िम्मेदारी किसकी है? पड़ोसियों की न !
Kaushlendra Vikram
बड़े दिनों से सुनता आ रहा था कि अब चवन्नी-अठन्नी का जमाना नहीं रहा। महंगाई के इस दौर में अब मिलता ही क्या है चवन्नी और अठन्नी में।
Alok Kumar
किसी अपराध में सोनिया गांधी का नाम लेने से क्यों हिचकते हैं लोग ? मेरे आग्रह भरे सवाल पर आप कह सकते हैं कि अपराध में संलिप्तता का पता ही नहीं लगता इसलिए सोनिया गांधी का नाम नहीं लेते लोग । लेकिन लंबे समय से अपराध की रिपोर्टिंग करने की वजह से अंदर ही अंदर लगता है कि अपराध के बाद अपराध के लाभान्वितों का शक के तौर पर भी तो नाम लेने की स्थापित परंपरा है ।
Tanveer Zafri
योग क्रिया द्वारा शरीर की काया को निरोग रखने के दावे को माध्यम बना कर आम भारतीय जनमानस तक अपनी पैठ बनाने वाले बाबा रामदेव इन दिनों योग के बजाए राजनीति,राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार विशेषकर देश के भ्रष्टाचारियों द्वारा विदेशों में जमा काला धन के मुद्दे पर अधिक सक्रिय व मुखरित हैं।
Alok Kumar
चाटुकारिता यानी चमचागिरी राजनीति का फलसफा है। कांग्रेस इसी फलसफा पर टिकी है। इसे लेकर कांग्रेस में कहीं कोई कन्फ्यूजन नहीं है जो जितना बड़ा चाटुकार वो उतना बड़ा हैसियतदार।
Punya Prasun Bajpai
पहले आर के धवन फिर वंसत साठे। दोनों इंदिरा गांधी के सिपहसलार। दोनो के लिये काग्रेस का मतलब गांधी परिवार। और दोनों ने ऐसे वकत काग्रेस को निशाने पर लिया जब काग्रेस सात बरस के सत्ता सुकून के जश्न में डूबी ।
Know when the festival of colors, Holi, is being observed in 2020 and read its mythological significance. Find out Holi puja muhurat and rituals to follow.
मकर संक्रांति 2020 में 15 जनवरी को पूरे भारत वर्ष में मनाया जाएगा। जानें इस त्योहार का धार्मिक महत्व, मान्यताएं और इसे मनाने का तरीका।